BHOPAL. न्यूज स्ट्राइक की पिछली कड़ी में हमने आपको बताया था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो उसे किन चुनौतियों का सामना करना होगा। अब बताते हैं कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो उसे कितनी परेशानियों का सामना करना होगा। 18 साल सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी के लिए जीतने पर नई सरकार चलाना आसान नहीं होगा कांग्रेस को तो फिर दो दशक के बाद ये मौका ठीक से मिल सकेगा। जाहिर है सत्ता में आने की खुशी तो होगी ही लेकिन सरकार चलाने का टेंशन भी कुछ कम नहीं होगा। आर्थिक घाटा तो पहले से ही मुंह बाय खड़ा है। इसके अलावा भी कांग्रेस को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना होगा और बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस की सरकार के सामने चुनौतियों का अंबार ज्यादा बड़ा होगा।
दोनों तरफ धार है और उस पर चलना भी जरूरी है
कांग्रेस को 2018 में सत्ता में वापसी करने का मौका मिला, लेकिन ये सरकार सिर्फ पंद्रह महीने ही चल सकी। इस समय अंतराल को नजरअंदाज कर सीधे ये मान लेते हैं कि इस बार कांग्रेस जीती तो बीस साल बाद सत्ता में वापसी का मौका मिलेगा। ये उम्मीद की जा सकती है कि पार्टी पुरानी गलती न दोहराएगी न ही विरोधियों को ऐसा कोई मौका देगी की फिर सत्ता से हाथ धोना पड़े, लेकिन कांग्रेस को अगर ये सत्ता मिल भी जाए तो क्या है। ये सत्ता कांग्रेस के लिए ऐसी तलवार होगी जिसके दोनों तरफ धार है और उस पर चलना भी जरूरी है। क्योंकि उसके बिना पांच साल का सफर पूरा नहीं होगा। शिवराज सिंह सरकार वैसे भी प्रदेश को जबरदस्त तरीके से कर्जदार बना चुकी है। प्रदेश पर कितना कर्जा है ये बातें पहले भी बहुत हो चुकीं और लगातार हो भी रही हैं। सो कांग्रेस के लिए ये जानी पहचानी मुश्किल ही है। इसके अलावा जो मुश्किलें या चुनौतियां सामने होंगी, कांग्रेस को यकीनन उनका भी अंदाजा होगा ही।
कांग्रेस को भी सियासत की बाधा दौड़ में भागना होगा
अगर अंदाजा नहीं भी है तो हो जाएगा। वो भी चंद ही दिनों में। आपने मोबाइल पर कुछ ऐसे गेम्स जरूर खेले होंगे जिसमें एक शख्स तेजी से भागता चला जाता है और हर पड़ाव पर उसे एक नए किस्म के ऑब्स्टेकल का सामना करना पड़ता है। साधारण भाषा में कहें तो एक किस्म की टेक्निकल बाधा दौड़। कांग्रेस की सरकार को भी सियासत की इसी बाधा दौड़ में भागना होगा। जहां हर मोर्चे पर एक नई बाधा तैयार खड़ी हो चुकी है।
आइए देखते हैं कांग्रेस को किस-किस मोर्चे पर एक नए चैलेंज का सामना करना है...
- सबसे पहली समस्या, जो पहले भी डिसकस हो चुकी है। वो है आर्थिक कर्जदारी। ये चैलेंज तो बीजेपी और कांग्रेस के लिए कॉमन ही है, लेकिन कांग्रेस के लिए बाधा थोड़ी ज्यादा है। बीजेपी से होड़ करने के लिए कांग्रेस ने भी जमकर घोषणाएं की हैं। हर महीने महिलाओं को 15 सौ रुपए देने से लेकर छात्रवृत्ति जैसी कई घोषणाएं हो चुकी हैं। ऐसी योजनाओं को चलाने के लिए बीजेपी के शासनकाल में आसानी से कर्जा मिलता रहा है, लेकिन केंद्र में बीजेपी की सरकार होने पर कांग्रेस की प्रदेश सरकार को कर्जा मिलना आसान नहीं होगी। जिसकी वजह से योजनाओं के आसानी से पूरा होने में मुश्किल आएगी ही।
- इस मुश्किल से बड़ी मुश्किल होगी राजनीतिक चुनौती। जो कांग्रेस को अपने ही नेताओं से मिलने वाली है। क्षत्रपों को साधना बीजेपी के लिए जितना मुश्किल है कांग्रेस के लिए भी उतना ही कठिन है। ये तय है कि कांग्रेस जीती तो सीएम कमलनाथ ही होंगे। कम से कम इस बिंदू पर कांग्रेस में संशय की कोई स्थिति फिलहाल नहीं है, लेकिन कमलनाथ को भी अपने खेमे से लेकर दूसरे खेमे तक को साधना होगा। दिग्विजय सिंह के खेमे को पूरी तवज्जो देनी होगी। विंध्य में अजय सिंह का ख्याल रखना होगा और मालवा में अरूण यादव का। जो पहले भी कांग्रेस को मुश्किलों में डाल चुके हैं। बहुत समय बाद सत्ता में आने के बाद हर खेमे को संतुष्ट करना भी लाजमी होगा।
- इसके बाद प्रशासनिक मोर्चे पर कमलनाथ जैसे तर्जुबेकार को अलग-अलग खेमे और पुराने खास अफसरों का संतुलन बनाकर रखना होगा। जो नेता मंत्रिमंडल में अपना दबदबा रखना चाहेंगे वो नेता अपने-अपने क्षेत्रों में प्रशासनिक जमावट के लिए भी दबाव जरूर डालेंगे।
- इन सबके अलावा लोकसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस को मैनेजमेंट करना होगा। प्रदेश सरकार से आलाकमान को ये उम्मीदें जरूर होंगी कि अब लोकसभा में परफोर्मेंस बेहतर हो। फिलहाल मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास सिर्फ एक ही लोकसभा सीट है छिंदवाड़ा। जिस पर कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ काबिज हैं। परफोर्मेंस सुधारने और वोटर्स का भरोसा हासिल करने के लिए कांग्रेस को बमुश्किल चार महीने का समय मिलेगा।
- इस बीच ये भी तय मान लीजिए कि कांग्रेस पर ईडी और सीबीआई की तलवार लटकती ही रहेगी। 2018 में बनी कलनाथ सरकार के दौरान ही कमलनाथ के करीबियों पर आईटी की छापेमारी हुई थी। गोविंद सिंह को भी ईडी का नोटिस मिल ही चुका है। इस बार सत्ता में आने के बाद इन नोटिसों और कार्रवाइयों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है।
सवाल ये है कि जीत का दावा कर रही कांग्रेस इन चुनौतियों के लिए कितनी तैयार है।
दौड़ जितनी सधी हुई होगी सरकार चलाना उतना ही आसान होगा
यानी कांग्रेस बीस साल बाद मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी के सपने संजो रही है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि तीन दिसंबर को जनता जनार्दन का जो फैसला आएगा वो किसके पक्ष में होगा। सपना सच हुआ तो तय है कि जश्न भी जबरदस्त होगा। बस जश्न का खुमार लंबा खिंचा तो सरकार की परेशानियां भी लंबी होती जाएंगी। अपनी इस बाधा दौड़ को जीतने के लिए स्टार्ट लाइन से ही तेजी से दौड़ना शुरू होगा। दौड़ जितनी सधी हुई और तेज होगी बाधाएं उतनी ही जल्दी खत्म होगी और सरकार चलाना उतना ही आसान होगा।